000 | 02555nam a22001937a 4500 | ||
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005 | 20250304113325.0 | ||
008 | 240223b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789390366033 | ||
040 | _cNational Institute of Technology Goa | ||
082 |
_a891.431 _bSAR/PAT |
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100 | _aSaral, Sunil Bajpai | ||
245 | _aPathik-dharma : ek prerak geet | ||
250 | _a1st | ||
260 |
_aDelhi: _b Prabhat Prakashan Pvt. Ltd., _c 2020 |
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300 |
_b114p.: 8x10x1; Hard cover _c _e |
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520 | _aकिताब के बारे में: श्री सुनील बाजपेयी ‘सरल’ की अभिनव काव्य-कृति ‘पथिक-धर्म : एक प्रेरक गीत’ अबतक का सबसे लंबा छंदोबद्ध गीत है। इसमें संवेदना और वैचारिकता की जुगलबंदी है। इस धरती पर मानव-जीवन संघर्षों की एक कहानी है और इन संघर्षों के बीच कवि का संदेश है—रुको मत, चलते रहो। निरंतर चलते रहने का आह्वान एक ओर ऋषियों के आप्तकथन ‘चरैवेति-चरैवेति’ से जुड़ता है, दूसरी ओर रवींद्रनाथ ठाकुर के ‘एकला चलो रे’ की ध्वनि भी इसमें अंतर्निहित है। जीवन-पथ पर फिसलन, अँधेरा, काँटे, निराशाओं के मेघ, संशय के बादल और ऐसी ही बहुत सी बाधाएँ मिलती हैं। साथ-ही-साथ, संसार में अनेक आकर्षण भी हैं, जो व्यक्ति को कर्म-विमुख कर सकते हैं। इन सभी परिस्थितियों का एक ही उपचार है—चलते रहो, निरंतर चलते रहो। पाँवों में काँटे चुभते हैं, कंधों पर है बोझ अधिक। किंतु निरंतर चलते जाना, यही तुम्हारा धर्म पथिक॥ | ||
650 |
_2Hindi _aHindi |
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